वेदार्ष महाविद्यालय न्यास द्वारा संचालित शाखा
श्रीमद् दयानन्द वेद विद्यालय ११९, गौतमनगर, नई दिल्ली-११00४९
आर्ष-न्यास का यह प्रथम संस्थान भारत की राजधानी के दक्षिण छोर में स्थित प्रसिद्ध अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के पीछे गौतमनगर में आधुनिक भव्य भवनों से सुसज्जित आर्ष विद्या का केन्द्र एवं आर्यों के तीर्थ स्थल के रुप में सुशोभित हो रहा है।
यह विद्यालय अपनी कतिपय विशिष्टताओं के कारण आर्यजगत् की श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है-
१. ब्रह्मचारियों के भोजनाच्छादन और रहन-सहन आदि में समानता का व्यवहार होता है।
२. गुरुकुल शिक्षा प्रणाली में गुरु का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि अग्निना अग्निः समिध्यते के अनुसार आचार्य अपनी दिव्य भावनाओं की स्थापना अपने अन्तेवासियों (शिष्यों) के हृदय में करके उन्हें पशुत्व से देवत्व में परिणत कर देता है। यह संसार का सबसे कठिन कार्य है और इसीलिए हमारी संस्कृति में गुरु का गौरव अतुल्य है। विद्यालय का यह परमसौभाग्य है कि इसके साथ श्रद्धेय आचार्य हरिदेव जी (वर्तमान नाम स्वामी प्रणवानन्द) जैसे आदर्श आचार्य का जीवन लगा हुआ है, जिस प्रकार पूज्य आचार्य जी निष्कामभाव से विद्यालय की सेवा कर रहे हैं, वे ही भावनायें आपके स्नातकों में प्रतिफंिलत हो रही हैं। आज इस विद्यालय में सब अध्यापक आंशिक दाक्षिणा लेकर ही विद्या दान कर रहे हैं और सभी इस विद्यालय के स्नातक हैं।
३. यहाँ छात्र नियमित रूप से एक घण्टा यथायोग्य श्रमदान करते हैं, जिसमें सफाई, गोसेवा आदि इस प्रकार के सामाजिक कार्य सम्मिलित हैं। इस श्रमदान द्वारा जहाँ छात्रों का स्वास्थ्य ठीक रहता है, वहाँ अपनी संस्था से हार्दिक स्नेह एवं आत्मीयता उत्पन्न होती है।
४. पढ़ाई के साथ स्वास्थ्य, सदाचार एवं शिष्टाचार की शिक्षा भी मुख्यरुप से दी जाती है।
५. विद्यार्थी अपने योग्य आचार्यों के संरक्षण में आदर्श जीवन व्यतीत करते हैं।
६. वैदिक साहित्य, संस्कृत, अंग्रेजी व आधुनिक विषयों में विद्यार्थी को योग्य बनाया जाता है।
७. निःशुल्क शिक्षा देकर तथा बालक के अन्य सभी उत्तरदायित्व वहन करके माता-पिता को निश्चिन्त किया जाता है।
८. इस विद्यालय में प्राचीन मूल्यों के साथ-साथ वर्तमान की समस्याओं से संघर्ष करने का उत्साह भी बालक में पैदा किया जाता है।
९. कक्षा प्रथमा (अष्टम) से आचार्य (दर्शन, साहित्य, वेद, योग, इतिहास, पुरातत्व, आदि, एम0ए0 समकक्ष) तक की शिक्षा दी जाती है।
श्रीमद्दयानन्द वेद विद्यालय एक दृष्टि में-
स्थान – दक्षिण दिल्ली के प्रसिद्ध अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (मेडिकल अस्पताल) के पीछे गौतमनगर में आधुनिक भव्य भवनों से सुसजित, इण्डिया गेट सेे लगभग ५ किलोमीटर की दूरी पर वेद-विद्यालय स्थित है।
स्थापना – श्रावण पूर्णिमा संवत् १९९९ तदनुसार २४ अगस्त १९३४ ईस्वी, १९0 दयानन्दाब्द।
संस्थापक – श्री आचार्य राजेन्द्रनाथ शास्त्री (स्वामी सच्चिदानन्द जी योगी)।
प्रधानाचार्य – आचार्य हरिदेव ( स्वामी प्रणवानन्द जी )।
प्रवेश समय – १५ मई से ३0 जून तक।
प्रवेश आयु – सप्तम कक्षा उत्तीर्ण (१२ से १४)।
श्रेणी – अष्टम से १६ वीं तक (प्रथमा से आचार्य तक)।
विषय – व्याकरण, धर्मशास्त्र, साहित्य, निरुक्त, छन्दः, अलंकार, उपनिषद्, दर्शन, वेद, राजनिति, इतिहास, गणित, विज्ञान, अंग्रेजी आदि।
उपधि –(प्रथमा) अधिकारी, (मध्यमा) प्रवीण, (शास्त्री) व्याकरण-निष्णात, (आचार्य) व्याकरण पारंगत।
शिक्षा – सप्तम श्रेणी उत्तीर्ण छात्र के एक वर्ष तक विशेष अध्ययन कराकर, व्याकरणशास्त्र में प्रवेश के योग्य बनकर (मध्यमा) प्रवीण से (आचार्य) व्याकरणपारंगत १६ वीं श्रेणी तक अध्ययन कराना इस अध्ययनकाल के किसी प्रकार का शिक्षा शुल्क नहीं है।
अवकाश – शिक्षाकाल में कोई अवकाश नर्ही होता है।
मान्यता – महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक (हरियाणा) से सम्बद्ध।
उत्सव – शीत ऋतु नवम्बर, दिसम्बर।
श्रीमद् दयानन्द वेदार्ष महाविद्यालय गुरुकुल यमुनातट, मंझावली, जिला – फरीदाबाद, हरियाणा
यह संस्था श्रीमद् दयानन्द वेदार्ष महाविद्यालय न्यास ११९, गौतमनगर-४९ से सम्बन्धित द्वितीय शाखा आचार्य जय कुमार जी के आचार्यत्व में आर्ष शिक्षा के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही है। यह शाखा यमुना के तट पर हरियाणा की पवित्र भूमि पर भव्य भवनों के साथ-साथ विशाल भूखण्ड के माघ्यम से विख्यात है। इस संस्था की स्थापना ४ जून, १९९४ को श्री देवमुनि वानप्रस्थ (स्वामी शान्तानन्द जी) द्वारा प्रदत्त भूमि में की गई है।
२7 वर्षों के समय में दानियों के सहयोग, विद्वानों के आशीर्वाद एवं परमात्मा की अनुकम्पा से उत्तरोत्तर प्रगति पथ पर है। इस समय संस्था के पास बारह एकड़ भूमि तथा दो नलकूपों एवं नैष्ठिक ब्रह्मचारियों तथा साधकों के लिए योगसाधना की अनेक कुटियाँ हैं, जो कि आधुनिक सुख-सुविधाओं से युक्त है। इसके साथ-साथ भव्य गोशाला, छात्रावास एवं यज्ञशाला का मनोहर दृश्य भी आगन्तुकों के हृदय को आकर्षित करता है। इस संस्था के अधीत-स्नातक देश-विदेश में अनेक स्थानों पर जाकर भारतीय संस्कृति एवं वैदिक सभ्यता का प्रचार-प्रसार श्रद्धा एवं निष्ठा से कर रहे हैं। यहाँ के छात्रों ने अनेक प्रतियोगिताओं में भाग लेकर महाविद्यालय का नाम शिखर पर पहुँचाया है।
इस संस्था ने वर्ष २00६ में एक महान ऐतिहासिक कार्य किया है। इस संस्था ने एक अभूतपूर्व पंचमासिक-महायज्ञ का अयोजन किया, जो तपोनिष्ठ श्रद्धेय स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। इस यज्ञ में प्रायः देश के सभी गणमान्य विद्वानों ने अपनी आहुति प्रदान की है। इसी ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व यज्ञ में गुरुकुलों के प्राण आर्ष पाठविधि के प्रबल समर्थक समादरणीय आचार्य प्रवर हरिदेव जी संन्यास ग्रहण कर स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती बने।
श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौन्धा देहरादून (उत्तराखण्ड)
परिचय –
‘मातृमान् पितृमानाचार्यवान् पुरुषो वेद’ शतपथ ब्राह्मण के इस वचन के अनुसार वह बालक भाग्यशाली है जिसके तीन उत्तम शिक्षक अर्थात् माता, पिता और आचार्य होते हैं। प्रस्तुत शास्त्रवचन का अनुसरण करते हुए उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार से सम्बन्धित श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौन्धा देहरादून की स्थापना नगाधिराज हिमगिरि के शिखर पर शिखरिशिरोमणि की साम्राज्ञी मसूरी की हरितिमा से परिपूर्ण उपत्यका पर स्वनामधन्य पूज्य स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी द्वारा की गयी। यह गुरुकुल विशाल शाल वृक्षों से परिवेष्टित एवं शैलोद्भूत नीमी नदी के तीर पर विराजित होकर दर्शकों को मन्त्रमुग्ध कर रहा है। प्रकृति की पुण्यलीला में पल्लवित होने से ‘उपह्वरे गिरीणां संगमे च नदीनाम्। धिया विप्रो अजायत’ इस श्रुतिवचन के सर्वतन्त्र सिद्धान्त को सत्यता में परिवर्तित कर रहा है। इस गुरुकुलीय भूमि में सर्वप्रथम वैदिक ऋचाओं का पठन-पाठन 4 जून 2000 को सोल्लास एवं धूम-धाम के साथ प्रारम्भ हुआ। मिट्टी की कुटीरों में अध्ययनरत चार छात्रें से प्रारम्भ हुए गुरुकुल ने षोडश वर्ष के इस अल्पकाल में ही दानियों के सहयोग तथा वेदविद्विद्वानों के आशीर्वाद से सुन्दरतम यज्ञशाला, भव्य भवनों, मनोहर गोशाला एवं सुरम्य प्राकृतिक सौन्दर्यवल्लरियों से प्रत्येक मानवमानस को सहसा ही यह शोभायमान भूतल स्वप्रति सतत समाकर्षित एवं स्ववशीभूत करता है। वर्तमान में शताधिक छात्रें द्वारा वैदिक ऋचाओं के गान से प्राचीन ऋषिपरम्परा एवं प्राच्यविद्या की स्मृति स्मृतिपटल पर नूतन आलेख के रूप में अंकित हो जाती है।
उद्देश्य –
श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौन्धा देहरादून का मुख्य उद्देश्य निःस्वार्थ भाव से ऐसे नागरिकों का निर्माण करना है, जो अपने उच्च चरित्र एवं विद्वत्ता द्वारा वैदिक सिद्धान्तों व संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार करें। जन्मगत जातीय बन्धनों एवं मतविशेष के अवलम्बन से उत्पन्न विषमताओं अन्धविश्वासों, जातिप्रथा, अस्पृश्यता, दहेजप्रथा, ध्रूमपानादि कुरीतियों के प्रति यहॉं के विद्यार्थी जागरूक रहें। संस्था में अध्ययनरत छात्र प्राकृतिक आपदाओं से पीडि़त लोगों की सहायता के लिए सतत प्रयत्नशील रहें तथा ‘मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे’ व ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ जिनके जीवन का लक्ष्य हो।
उपलब्धियॉं –
श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल पौन्धा देहरादून ने अल्प काल में ही अष्टाध्यायी, काशिका, निरुक्त, महाभाष्य स्तर के साथ साहित्य एवं वेद-वेदांगों में प्रवीण छात्रों का निर्माण किया है। शास्त्र एवं कलाकौशल प्रतियोगिताओं में इस संस्था के छात्रों ने अनेक कीर्तिमान स्थापित करते हुए विजयोपहार प्राप्त किये हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की शास्त्र स्मरण की प्रतियोगिताओं में गुरुकुल करतारपुर (पंजाब) एवं गुरुकुल आमसेना (उड़ीसा) में अपनी विशेष प्रतिभा प्रस्तुत कर विद्वानों के मुखारविन्द से विशेष प्रशंसा प्राप्त की है। दक्षिण भारत आन्ध्र प्रदेश में स्थित तिरुपति में पौराणिक समुदाय के तिरुपतितिरुमलादेवस्थानानि ट्रस्ट के द्वारा आयोजित विद्वत्सदस् में व्याकरण विषय महाभाष्य के समकक्ष की प्रतियोगिता में यहाँ के छात्रों ने अपने गुरुकुल को प्रथम (स्वर्ण पदकद) तथा द्वितीय स्थान (रजत पदक) प्राप्त कराकर गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के गौरव को द्विगुणित किया है तथा यहाँ की पठन-पाठन विधि को सर्वविध सर्वोत्तम सिध्द कर आर्ष-पाठविधि की विजयपताका को फहराया है। यहाँ के छात्रों ने डी.ए.वी. देहरादून, गुरुकुल कांगड़ी, दिल्ली आदि अनेक स्थानों पर आयोजित वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में भी अनेक बार प्रथम स्थान व विजयोपहार प्राप्त किया है।
‘उभाभ्यामपि समर्थोsस्मि शास्त्रदपि शरादपि’ अर्थात् मैं शास्त्र और शस्त्र दोनों में समर्थ हूॅं की सूक्ति को युक्ति युक्त सिद्ध करते हुए राज्य एवं राष्ट्रिय स्तर पर निशानेबाजी एवं तीरंदाजी में पदक प्राप्त कर उत्तराखण्ड राज्य का गौरव बढ़ाया है। गुरुकुल के यशस्वी स्नातक दीपक कुमार ने निशानेबाजी की अन्तराष्ट्रिय प्रतियोगिताओं में अनेक पदक प्राप्त किये हैं। 4 अप्रैल 2018 से ऑस्ट्रेलिया में आयोजित 21 वें राष्टमंडल खेल (कॉमनवेल्थ गेम) 2018 के लिए भारत गणराज्य का प्रतिनिधित्व कर फाइनल में छटे स्थान पर रहे। 2018 में जकार्ता में आयोजित एशियन गेम्स में रजत पदक प्राप्त कर देश व गुरुकुलीय परम्परा का नाम रोशन किया।
श्रीमद्दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल अधीत छात्र शिक्षा पूर्ण कर अनेक विद्यालय, महाविद्यालय (भगवानदास संस्कृत महाविद्यालय हरिद्वार, हंसराज कॉलेज दिल्ली, लातूर महाविद्यालय महाराष्ट्र आदि) व सशस्त्र सेना (थल सेना, वायु सेना एवं उत्तराखण्ड पुलिस आदि) में सेवारत हैं।
यहॉं के विद्यार्थी सत्र 2015—16, 2016—17, 2017—18 से निरन्तर उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार से शास्त्री (प्राचीन व्याकरण) श्रेणी में सर्वाधिक अंक प्राप्त कर स्वर्णपदक प्राप्त करते रहे हैं।
उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी हरिद्वार द्वारा सत्र 2016-17, 2017—18 में यहॉं के ब्रह्मचारियों के शिक्षा में किये गये परिश्रम के लिए प्रतिभा सम्मान से भी सम्मानित किया जाता रहा है।
यहॉं के छात्र राष्ट्रिय संस्कृत संस्थान, नई दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रिय प्रतियोगिताओं में 2008 से निरन्तर उत्तराखण्ड राज्य का प्रतिनिधित्व करते हुए प्रतिवर्ष पदक प्राप्त कर राज्य का गौरव बढ़ा रहे हैं। श्रीमद्दयानन्द वैदिक गुरुकुल न्यास द्वारा आयोजित विभिन्न शास्त्रीय प्रतिस्पर्धाओं में यहॉं के विद्यार्थियों ने सफलता प्राप्त की है।
उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी द्वारा आयोजित विभिन्न खण्डस्तरीय, जनपदस्तरीय, उत्तराखण्डराज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं यहॉं के छात्र प्रतिभाग कर विजय को प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों आदि संस्थानों द्वारा आयोजित प्रतिस्पर्धाओं में गुरुकुल के छात्र प्रतिभाग कर अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन रखते हैं।
गुरुकुल में लक्ष्यवेध (निशानेबाजी) तीरन्दाजी आदि क्रीड़ाओं के शिक्षण की भी सुविधा उपलब्ध है। यहाँ के छात्रों ने गत वर्षों में उत्तराखण्ड में निशानेबाजी प्रतियोगिता में सर्वाधिक पदक प्राप्त कर गुरुकुल को गौरवान्वित किया है। राष्ट्रीय स्तर पर भी स्वर्ण प्राप्त कर गुरुकुल एवं उत्तराखण्ड का सम्मान बढ़ाया है। सतत उन्नति करते हुए यहाँ के छात्रों ने निशानेबाजी में राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात होकर सभी को हतप्रभ किया है। तीरंदाजी में भी यहाँ के छात्रों ने उत्तराखण्ड में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त कर राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में विशिष्ट स्थान बनाया है। वर्तमान में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की तैयारी में छात्र श्रध्दा एवं आस्था से संलग्न हैं।
पूर्ण पता:-
श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्योतिर्मठ गुरुकुल,
दून वाटिका-2, आर्यपुरम्, पौन्धा, देहरादून (उत्तराखण्ड)-248004
ई.मेल – arsh.jyoti@yahoo.in, gpondha@gmail.com
अधिकारी गण एवं सम्पर्क सूत्र –
आचार्य – आचार्य डॉ. धनंजय, मो.-9411106104
अधिष्ठाता – आचार्य चन्द्रभूषण शास्त्री, मो.-9411310530
गुरुकुल का फेसबुक पेज –
ट्विटर पेज –
यूट्यूब चैनल –
महर्षि दयानन्द गुरुकुल योगाश्रम नरसिंहनाथ, पाईकमाल,जिला-बरगढ़ (उड़ीसा)
यह संस्था श्रीमद् दयानन्द वेदार्ष महाविद्यालय-न्यास ११९ गौतम, नई दिल्ली-४९ से सम्बद्ध चतुर्थ शाखा है। यह शाखा प्रसिद्ध ऐतिहासिक आयुर्वेदिक औयुर्वेदिक औषधियों के भण्डार नरसिंहनाथ में गन्धमार्दन पर्वतमाला के सतत पवित्र रोगहारक जलस्रोत से स्नात उड़ीसाप्रान्त के जिला बरगढ़ के पाईकमाल नरसिंहनाथ में स्थित है।
यह शैक्षणिक संस्था अनेक वर्षों से उजाड़ पड़ी मानों पूज्य स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी की रचनात्माक दृष्टि की ही प्रतीक्षा कर रही थी। पूर्व में इसे स्वामी ज्ञानानन्द सरस्वती ने संस्थापित किया, किन्तु शारीरिक असमर्थता के कारण संचालन के असमर्थ थे। पूज्य स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी ने इस संस्था का पुनरुद्धार करते हुए 2003 में महर्षि दयानन्द गुरुकुल योगाश्रम नरसिंहनाथ, पाईकमाल,जिला-बरगढ़ (उड़ीसा) के नाम से विधिवत् संचालन किया। पूज्य स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती के संरक्षण में आज यह संस्था मात्र 17 वर्षों में ही पश्चिमी उड़ीसा के शिक्षा केन्द्रों में अपना उच्च स्थान प्राप्त कर रही हैं। स्वामी प्रणवानन्द के सुयोग्य शिष्य आचार्य नरदेव यजुर्वेदी जी के संरक्षकत्व में एवं आचार्य बुद्धदेव जी के आचार्यत्व में 90 विद्यार्थी आर्षग्रन्थों के निःशुल्क अध्ययन में सतत संलग्न हैं तथा आधुनिक शिक्षा के ज्ञान को प्राप्त कराते हुए आर्ष न्यास अपनी विस्तारित शाखा से गौरवान्वित हो रहा है।
श्रीकृष्ण आर्ष गुरुकुल (देवालय) गोमत, जिला-अलीगढ़ (उ.प्र.)
यह संस्था श्रीमद्दयानन्द वेदार्ष महाविद्यालय न्यास ¬११९ गौतमनगर नई दिल्ली-४९ से सम्बन्धित शाखा नं॰ ६ है। यह शाखा उत्तर प्रदेश के अन्तर्गत अलीगढ़ जनपद की खैर तहसील के अन्तर्गत गोमत नामक गाँव में चल रही है। इस गुरुकुल के पास ५१ बीघा भूखण्ड है, जिसमें ब्रह्मचारियों के हेतु अन्न, फल एवं शाक-सब्जी आदि का उत्पादन किया है। ब्रह्मचारियों के लिए दुग्ध की सुचारु व्यवस्था करने के लिए एक गोशाला का निर्माण भी किया है। पूज्य स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी के अमोघ आशीर्वाद से वर्तमान में यह संस्था अपने प्राप्य लक्ष्य की ओर अग्रसर है। वर्तमान में इस संस्था में स्वामी श्रद्धानन्द सरस्वजी जी के आचार्यत्व में 50 ब्रह्मचारी अध्ययनरत है। इस संस्था के प्रथम आचार्य अरविन्द कुमार जी थे, जिनकी सम्पूर्ण शिक्षा वेदार्ष महाविद्यालय न्यास के ही शाखा संस्थान गुरुकुल पौन्धा देहरादून से हुयी। सम्प्रति संस्था के विकास हेतु भवनों का निर्माण कार्य प्रगति पर है।
अधिकारियों के सम्पर्क सूत्र –
आचार्य – रामपाल शास्त्री जी, मो.-9810283782
व्यवस्थापक – आचार्य सुनील शास्त्री जी, मो.-9557219329
पूर्ण पता –
श्रीकृष्ण आर्ष गुरुकुल (देवालय)
गोमत, जिला-अलीगढ़ (उ.प्र.)
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