सन्देश

गुरुकुलीय परम्परा विश्व की सबसे प्राचीनतम परम्परा है। जिसके द्वारा भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में निरन्तर नवीन शैक्षणिक व वैज्ञानिक तथ्यों पर अनुसन्धानपरक कार्य होता रहा है। समस्त वैदिक वाङ्मय की उत्पत्ति में भी गुरुकुलीय परम्परा का ही योगदान है, क्योंकि एकान्त, शान्त, वन्यवातावरण में ऋषियों ने अपने शिष्यों के साथ गम्भीर चिन्तन व मनन कर जो निःश्रेयस व अभ्युदय के लिए परम हितकर था, उसी का सूत्ररूप में विन्यास वैदिक वाङ्मय में किया है। वैदिक वाङ्मय के चिन्तन से लाभान्वित होकर के ही समस्त विश्व ने भारत को विश्वगुरु माना। अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि गुरुकुलीय परम्परा के कारण ही भारत विश्व का ज्ञानदाता बना।

विचार वाटिका

24 सितम्बर (9)
24 सितम्बर (8)
24 सितम्बर (7)
24 सितम्बर (6)
24 सितम्बर (5)
24 सितम्बर (4)
24 सितम्बर (3)
24 सितम्बर (10)
24 सितम्बर
24 सितम्बर (2)
previous arrow
next arrow

सूचना दर्पण

नवीनतम लेख

गो-वध व मांसाहार का वेदों में

प्रायः लोग बिना कुछ सोचे समझे बात करते हैं कि वेदों में गो-वध तथा गो-मांस खाने का विधान है। ऐसे लोगों को ध्यान में रखकर कुछ लिखने का यत्न कर रहा हूं, आज तक जो भी ऐसी मानसिकता से घिरे हुऐ लोग हो वे जरुर इसको पढ़ कर समझने का प्रयास करें। क्षणिक स्वार्थ व...

धर्म की आवश्यकता क्यों?

जीवन की सफलता सत्यता में है। सत्यता का नाम धर्म है। जीवन की सफलता के लिए अत्यन्त सावधान होकर प्रत्येक कर्म करना पड़ता है, यथा – मैं क्या देखूॅं, क्या न देखूॅं, क्या सुनॅूं, क्या न सुनूॅं, क्या जानॅंू, क्या न जानूॅं, क्या करुॅं अथवा क्या न करूॅं। क्योंकि मनुष्य एक चिन्तनशील प्राणी है, जब...

महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा

वेदों की ओर लौटो का उद्धोष करने वाले महर्षि दयानन्द सरस्वती का सम्पूर्ण चिन्तन वेदों से अनुप्रणीत है। सूत्र रुप में सभी ज्ञान—विज्ञान की शिक्षा वेदों में प्राप्त है किन्तु महाभारत के पश्चात् भारतीय एवं विदेशी भाष्यकारों द्वारा स्वमन्तव्य के लिए अनेक शब्दों का भ्रामक अर्थ कर वेद की व्यापकता एवं प्राचीनता पर ही प्रश्न...