प्रकाशन
अप्रकाशित तथा अनुपलब्ध दुर्लभ वैदिक वाङ्मय का प्रकाशन अत्यन्त अपरिहार्य कार्य है। ग्रन्थ ज्ञान के अत्यन्त एवं अनन्य साधन होते हुए ज्ञान की अक्षय निधि भी है। इस अक्षय निधि का निरन्तर मुद्रण एवं प्रकाशन हो यही इस विभाग का परम लक्ष्य है।
गुरुकुल के विद्वान् अध्यापकों तथा शोधकर्ताओं के उच्चतम विचारों को पुस्तकाकार प्रदान करना इस विभाग का प्रमुख उद्देश्य है। जिससे समस्त विश्व के चिन्तनशील व्यक्तियों तक वेद का ज्ञान पहुँच सके।
आर्ष-न्यास ने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए आर्षसाहित्य संस्थान की स्थापना की है। इस संस्थान ने अब तक प्राचीन ऋषि-महर्षियों के दुर्लभ ग्रन्थों सहित लगभग 50 ग्रन्थों का प्रकाशन किया है । जिसमें वेद, उपनिषद्, व्याकरण, संस्कृतसाहित्य, एवं महर्षि दयानन्द द्वारा रचित पुस्तके हैं।