छात्रावास
गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति में प्रत्येक छात्र को छात्रावास में ही रहना अत्यन्त आवश्यक है। छात्रावास का स्वरूप आश्रमवास के अन्तर्निहित है। गुरुकुलीय शिक्षा में आश्रमवास का विशेष महत्त्व है। गुरुकुल का अभिप्राय ही ऐसी शिक्षा से होता है जहाँ सब छात्र गुरु के सान्निध्य में रहते हों, जिससे अहर्निश उनकी उचित देखरेख की जा सके। छात्र का वास्तविक चारित्र निर्माण आश्रम-वानप्रस्थ में ही सम्भव है।
गुरुकुल का शाब्दिक अर्थ ही गुरु का कुल अर्थात् परिवार है। जहाँ गुरु और शिष्य दोनों एकात्म होकर विद्या और धर्म की परस्पर उन्नति करें। छात्रावास में छात्रों के अनुशासन और शिष्टाचार पर विशेष बल दिया जाता है। जहाँ छात्र दैनन्दिनी दिनचर्या से परिवेष्टित होकर अपना सर्वांगीण विकास करते हैं।
उपर्युक्त उद्देश्य को ध्यान में रखकर ही आर्ष न्यास ने अपनी प्रत्येक संस्थाओं में विशाल छात्रावासों का निर्माण करवाया है। छात्रावासों में छात्रों को मर्यादित, तपस्वी एवं अनुशासित जीवन व्यतीत करना होता है।
मर्यादाएँ-
१. आर्ष-न्यास द्वारा संचालित विद्यालय प्राचीन गुरु-शिष्य परम्परा पर आधारित है।
२. आचार्यों द्वारा निर्धारित अनुशासन का पालन प्रत्येक छात्र के लिए अत्यन्त अनिवार्य है।
३. गुरुकुल में अध्ययनरत छात्र को अध्ययन की समाप्ति तक अविवाहित रहना होता है।