उद्देश्य

१.  बच्चों को बिना किसी जाति, धर्म तथा राष्ट्रीयता के भेद-भाव के निःशुल्क वैदिक शिक्षा प्रदान करना।

२  ऋषि दयानन्द द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश के तृतीय समुल्लास में वर्णित और उनके अन्य ग्रन्थों में लिखित पाठ्यक्रम तथा आर्ष प्रणाली का अनुरूप  से अनुपालन करना। ऋषि दयानन्द द्वारा वर्णित ऋग्वेदादिभाष्य-भूमिका के अनुरूप  शिक्षा भी वैदिक शिक्षा की भाँति सर्वथा निःशुल्क प्रदान करना।

३.  ऋषि दयानन्द द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश के द्वितीय समुल्लास में वर्णित अन्य देशीय भाषाओं अध्ययन के संकेत के अनुसार वैदेशिक भाषाओं का अध्ययन-अध्यापन करना, जैसे जर्मन, अंग्रेजी, फ्रेंच आदि।

४.  पातंजल योग के सिद्धान्तों के अनुसार प्रशिक्षण देना ।

५.  ऐसे निःस्वार्थ नागरिकों का निर्माण करना, जो अपने उच्च-चरित्र और विद्वत्ता द्वारा ऋषि दयानन्द के सार्वभौम विश्वशांति के सिद्धान्तों का प्रचार करें।

६.  जो छात्र आजीवन नैष्ठिक ब्रह्मचारी रहकर ऋषि दयानन्द के सिद्धान्तों का प्रचार करने का व्रत लें, उन छात्रों को सभी प्रकार के आवश्यक शुल्कों से मुक्त रखना तथा अन्य प्रकार से सहायता करना।

७.  आर्ष-न्यास द्वारा संचालित योगाश्रम में वानप्रस्थ एवं संन्यास आश्रम की भी व्यवस्था करना।

८.  राजनीति, विज्ञान, कला, अध्यात्म आदि क्षेत्रों में आधुनिक दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन हेतु शोध संस्थान स्थापित करना।

९.  योग्य अध्ययनशील मेधावी, निर्धन छात्रों की सहायता करना। (सहायता से सम्बद्ध छात्रों की मेधा तथा निर्धनता का निर्धारण प्रधानचार्य के विवेक पर निर्भर होगा)।

१॰.  वेद एवं वैदिक साहित्य के अध्ययन एवं शोध के कार्यों को तथा ऋषि दयानन्द के साहित्य की व्याख्या के कार्यों को प्रोत्सहित करना।

११.  आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार के लिए आयुर्वेदिक महाविद्यालयों का निर्माण एवं संचालन करना।

१२.  देश के किसी भी कोने में महवपूर्ण स्थानों पर आर्ष शिक्षण संस्थान खोलना।

१३.  महत्वपूर्ण स्थानों पर ऐसे केन्द्रों को स्थापित करना, जो लोगों को उनके सामाजिक एवं आध्यात्मिक कार्यों में मर्गादर्शन दे सकें।

१४.  आर्ष संस्थाओं की उन्नति एवं वैदिक धर्म के विश्वशांति के प्रचार के लिए संस्कृत, हिन्दी एवं विविध भाषाओं में पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करना।

१५.  महर्षि दयानन्द द्वारा प्रतिपादित गोकरुणानिधि के अनुसार राष्ट्रीय पशु-पक्षियों की रक्षा के लिए प्राणी रक्षा केन्द्रों की स्थापना, जिनमें गोशालादि प्रमुख हैं।

१६.  जनमानस के कल्याण के लिए धर्मार्थ-औषधालयों, चिकित्सालयों आदि की स्थापना करना।

१७.  प्राचीन दुर्लभ ग्रन्थों एवं ऐतिहासिक सामग्री की सुरक्षा के पुरातत्वीय संग्रहालयों का निर्माण करना और आर्ष ग्रन्थों को चिरस्थायी बनाने के लिए उन्हें यथाशक्ति ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण कराना और उन्हें प्रकाशित कराना।

१८. अनाथ-निर्धन बालक-बालिकाओं और महिलाओं के पालन-पोषण एवं सुरक्षा की व्यवस्था करना।

१९. मानवमात्र में तथा आर्ष-न्यास द्वारा संचालित शिक्षण संस्थाओं के छात्र-छात्राओं में वैज्ञानिक अभिरूचि विकसित करना, पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता उत्पन्न करना, मानव अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता पैदा करना, भारतीय संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में जानकारी देना एवं आधुनिक समाज की विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए वैदिक दृष्टि को विकसित करना।

२॰.  प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए सहयोग करना भी उद्देश्य होगा, जैसे- भूकम्प, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, संक्रामक रोग, महामारी का फैलना आदि।

२१.  जातीय विषमताओं, अन्धविश्वास, कुरीतियों आदि को मिटाना जैसे- जातिप्रथा, अस्पृश्यता, दहेजप्रथा, मद्यपान, धूम्रपान-चरस आदि का नशा, विवाह के अवसरों पर अनावश्यक व्यय की परम्परा आदि।

२२.  जातीय विषमता को दूर करने के उद्देश्य से आर्ष-न्यास संचालित गुरुकुलों एवं विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्रों को वैवाहिक अवस्था में विवाह के इच्छुक होने पर अन्तर्जातीय विवाह के लिए प्रोत्साहित करना।।